भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: '''दोपहर''' ठण्ड है दोपहर में<br /> ठण्ड से अलग रात की<br /> सुबह की ठण्ड से अ…
'''दोपहर'''
ठण्ड है दोपहर में<br />
ठण्ड से अलग रात की<br />
सुबह की ठण्ड से अलग<br />
ठण्ड दोपहर में-
मद्धिम हो रही है धूप<br />
उड़ रहे हैं पत्ते सूखे<br />
चल रही है हवा<br />
गहराती ठण्ड को!
आ रही है ठण्ड की महक से-<br />
याद-
दोपहर
ऎसी ही एक दोपहर को<br />
हुए थे हम अलग<br />
समेट एक-दूसरे को!
सूखे पत्तों का विषाद<br />
ठण्ड में<br />
दोपहर की!
ठण्ड है दोपहर में<br />
ठण्ड से अलग रात की<br />
सुबह की ठण्ड से अलग<br />
ठण्ड दोपहर में-
मद्धिम हो रही है धूप<br />
उड़ रहे हैं पत्ते सूखे<br />
चल रही है हवा<br />
गहराती ठण्ड को!
आ रही है ठण्ड की महक से-<br />
याद-
दोपहर
ऎसी ही एक दोपहर को<br />
हुए थे हम अलग<br />
समेट एक-दूसरे को!
सूखे पत्तों का विषाद<br />
ठण्ड में<br />
दोपहर की!