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Kavita Kosh से
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मच रहा है मुल्क में कोहराम क्यों ,
राजपथ पर बुत बने हैं राम क्यों ?
रोज आती है खबर अखवार में ,
लूट, हत्या , खौफ , कत्लेआम क्यों ?
रामसेतु है जुडा जब आस्था से ,
माँगते फिर भी अरे प्रमाण क्यों ?
सभ्यता की भीत को तुम धाहकर ढाहकर,
कर रहे पर्यावरण नीलाम क्यों ?
जिनके मत्थे मुल्क के अम्नों - अम्मांअमा,
दे रहे विस्फोट का पैगाम क्यों ?
बोलते हम हो गए होते दफ़न ,
चुप हुये तो हो गए बदनाम क्यों ?
कुछ करो चर्चा सियासी दौर की ,
अब ग़ज़ल में गुलवदन- गुल्फाम क्यों ?
जबतलक पहलू में तेरे है प्रभात ,
कर रहे हो ज़िंदगी की शाम क्यों ?
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