भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
गाढ़े कोलतार से ढँक जाती है
चलना दुश्वार हो जाता है
जब मैं सो जाता हूँ
अक्सर रात कि सुहानी नींदों का ख्वाब
देखता हूँ. हूँ।
</poem>