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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विनोद }} {{KKCatGhazal}} <poem> सब सिंहासन डोलेंगे गूंगे…
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|रचनाकार=कुमार विनोद
}}
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सब सिंहासन डोलेंगे
गूंगे जब सच बोलेंगे
सूरज को भी छू लेंगे
पंछी जब पर तोलेंगे
अब के माँ से मिलते ही
आँचल मे छिप रो लेंगे
कल छुट्टी है, अच्छा है
बच्चे जी भर सो लेंगे
हमने उड़ना सीख लिया
नये आसमां खोलेंगे
</poem>
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|रचनाकार=कुमार विनोद
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सब सिंहासन डोलेंगे
गूंगे जब सच बोलेंगे
सूरज को भी छू लेंगे
पंछी जब पर तोलेंगे
अब के माँ से मिलते ही
आँचल मे छिप रो लेंगे
कल छुट्टी है, अच्छा है
बच्चे जी भर सो लेंगे
हमने उड़ना सीख लिया
नये आसमां खोलेंगे
</poem>