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एकान्त / डी० एच० लारेंस

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यहाँ लोग अकेलेपन की शिकायत करते हैं ।मैं समझ नहीं पाता ,वे किस बात से डरते हैं । अकेलापन तो जीवन का चरम आनन्द है ।जो हैं निःसंग,सोचो तो, वही स्वच्छंद है । अकेला होने पर कविता लिखेंजगते हैं विचार;ऊपर आती है उठकरअंधकार से नीली झंकार । जो है अकेला,करता है अपना छोटा-मोटा काम,या लेता हुआ आराम,झाँक कर देखता है आगे की राह को,पहुँच से बाहर की दुनिया अथाह को; तत्वों के केन्द्र-बिन्दु से होकर एकतान बिना किसी बाधा के करता है ध्यान विषम के बीच छिपे सम का,अपने उदगम का ।
'''अंग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : रामधारी सिंह 'दिनकर''''
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