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<poem>
बाढ़्यौ ब्रज पै जो ऋन मधुपुर-बासिनि कौ
::तासौं ना उपाय काहू भाय उमहन कौं ।
कहै रतनाकर बिचारत हुतीं हीं हम
::कोऊ सुभ जुक्ति तासौं मुक्त ह्वैं रहन कौं ॥
कीन्यौ उपकार दौरि दोउनि अपार ऊधौ
::सोई भूरिभार सौं उबारता लहन कौं ।
लै गयौ अक्रूर क्रूर तब सुख-मूर कान्ह
::आए तुम आज प्रान-ब्याज उगहन कौं ॥82॥
</poem>
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