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कांपि-कांपि उठत करेजौ कर चांपि-चांपि / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
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14:09, 14 अप्रैल 2010
माधव के आवन की आवतिं न बातैं नैकु
::नित प्रति तातैं ऋतु सिसिर बनी रहै ॥92॥
</poem>
Himanshu
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