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[[Category:ग़ज़ल]]
वो नज़र में नज़ारा नहीं है
और कोई तमन्ना नहीं है
सच बयाँ तुम करोगे भला क्या
तुमने कुछ भी तो देखा नहीं है
ज़िन्दगी है सफ़र धूप का भी
बरगदों का ही साया नहीं है
नाख़ुदाओं की है मेहरबानी
कश्तियों को किनारा नहीं है