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Kavita Kosh से
जैसे ध्रुवतारा बेबस हो, स्याही सागर में घुल जाए
जैसे बरसोम बरसों बाद मिली चिट्ठी भी बिना पढ़े धुल जाए,
तेरे बिन मेरे होने का मतलब कुछ-कुछ ऐसा ही है
जैसे लावारिस बच्चे की आधी रात नींद खुल जाए ।