भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरे बिन / रमेश गौड़

No change in size, 04:32, 13 जून 2010
जैसे ध्रुवतारा बेबस हो, स्याही सागर में घुल जाए
जैसे बरसोम बरसों बाद मिली चिट्ठी भी बिना पढ़े धुल जाए,
तेरे बिन मेरे होने का मतलब कुछ-कुछ ऐसा ही है
जैसे लावारिस बच्चे की आधी रात नींद खुल जाए ।
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits