भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: <poem>भूल गई डेडर की जात ऊंचे -ऊंचे स्वर में गाना टर्राना । भूल गई चिड…
<poem>भूल गई डेडर की जात
ऊंचे -ऊंचे स्वर में
गाना टर्राना ।
भूल गई चिड़िया
गा-गा
धूल में नहाना ।
मोर भी नहीं तानता
अब छत्तर
पारसाल ही तो जन्मा था
जब उतरा था अकाल
चारों कूंट
बरसी थी
धोबां-धोबां धूल ।
वह बेचारा
यह भी नहीं जानता
क्या होती है बिरखा
क्या होता है उसका बरसना ।
</poem>
ऊंचे -ऊंचे स्वर में
गाना टर्राना ।
भूल गई चिड़िया
गा-गा
धूल में नहाना ।
मोर भी नहीं तानता
अब छत्तर
पारसाल ही तो जन्मा था
जब उतरा था अकाल
चारों कूंट
बरसी थी
धोबां-धोबां धूल ।
वह बेचारा
यह भी नहीं जानता
क्या होती है बिरखा
क्या होता है उसका बरसना ।
</poem>