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{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=मैं नहीं था लिखते समय
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
विदा बेला:
लय में जैसे कोई ठहरा
पत्तियों की नोंक पर
रह गया बस,जहाँ-तहाँ
ढलता हुआ
बिम्ब
दिनकर का सुनहरा
विवर्ण नभ
तिर रहा
मौन में मुखर
सागर के स्वर में
मन्द्र
कर रहे तारक-दल
आलाप,तिमिर छा रहा
साँझ का गहरा
<poem>
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|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=मैं नहीं था लिखते समय
}}
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<poem>
विदा बेला:
लय में जैसे कोई ठहरा
पत्तियों की नोंक पर
रह गया बस,जहाँ-तहाँ
ढलता हुआ
बिम्ब
दिनकर का सुनहरा
विवर्ण नभ
तिर रहा
मौन में मुखर
सागर के स्वर में
मन्द्र
कर रहे तारक-दल
आलाप,तिमिर छा रहा
साँझ का गहरा
<poem>