भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: हुस्न का दरिया चढ़ता है आँखों में यादों की नदी उमड़ती है- अँधेरा ह…
हुस्न का दरिया
चढ़ता है आँखों में
यादों की नदी उमड़ती है-
अँधेरा है
अकेला हूँ,शहर से दूर
नीमख़ाबी में,कहीं ठिठकता
आसमाँ बेनूर
ख़ामोश रात भी सिसकती
थके क़दम
सुब्हद की जानिब बढ़ती है
यादों की नदी उमड़ती है
चढ़ता है आँखों में
यादों की नदी उमड़ती है-
अँधेरा है
अकेला हूँ,शहर से दूर
नीमख़ाबी में,कहीं ठिठकता
आसमाँ बेनूर
ख़ामोश रात भी सिसकती
थके क़दम
सुब्हद की जानिब बढ़ती है
यादों की नदी उमड़ती है