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<poem>
पीठ पर,

लोगों ने फिर

रख लीं सलीबें हैं,

हाकिमों के हाथों में

शायद जरीबें हैं।

'राजधानी कूच' का

पैगाम है

गांव, बस्ती, शहर तक

कोहराम है

देवता वरदान देने पर तुले हैं

दो ही वर हैं

बाढ़ या सूखा।


खेत बिन पानी

फटे, फटते गये

या नदी की धार में

बहते गये

फसल बोना धर्म था, सो बो चुके हैं

क्या उगेगा

डंठलें ,भूसा .<poem/>