भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=सर्वत एम जमाल संग्रह= …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna}}
रचनाकार=सर्वत एम जमाल
संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
प्रेम, प्यार ,अनुराग ,मुहब्बत
यह भावनाएं मुझमें भी हैं
आख़िर हूँ तो मैं भी
इंसान ही ।
किसी की नशीली आँखें
सुलगते होंठ
खुले-अधखुले , सुसज्जित केश
मुझे भी प्रभावित करते हैं
शायद तुम्हे विश्वास नहीं
क्योंकि मेरी रचनाओं में
तुम्हें इसकी परछाई तक
दिखाई नहीं पड़ती।
यह भी मेरे
प्रेम , अनुराग
प्यार , मुहब्बत का
प्रमाण है
जो मुझे है
प्रकृति से ,
धरती से ,
विधाता की हर रचना से।
मैं नफरत करता हूँ
शोषण से ,
अत्याचार से ,
दिखावे से,
झूट को सच
और सच को
झूट कहने से ।
यही कारण है
मेरी रचनाएं
इनके विरोध में खड़ी हैं ।
जब कभी
इस अघोषित युद्ध में
जीत ,
मेरी कविताओं की
मेरे विचारों की होगी
और हार जायेंगे
शोषण , अत्याचार , कदाचार
एवं
धरती पर नफरत उगाने वाले
और उनके सहायक तत्व
तब इस धरती पर
सिर्फ़ प्रेम होगा
कोई बच्चा ,
नहीं शिकार होगा
कुपोषण और
बालश्रम के
दानव का ।
कोई महिला
देह्शोषित
नहीं होगी ।
कोई पुरूष
अपने ही
परिजनों की नजरों में
शर्मिन्दा नहीं होगा
तब
मेरी रचनाएं
फ़िर
समय का दर्पण बनेंगी
और एक
नया फलक बनाएंगी ,
इस धरती के लिए ।
मुझे विश्वास है
तब मैं अकेला नहीं रहूँगा
अजूबा नहीं रहूँगा
और ऐसा नहीं रहूँगा ।
परन्तु क्या
मेरे जीते जी
ऐसा होगा ? <poem/>
{{KKRachna}}
रचनाकार=सर्वत एम जमाल
संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
प्रेम, प्यार ,अनुराग ,मुहब्बत
यह भावनाएं मुझमें भी हैं
आख़िर हूँ तो मैं भी
इंसान ही ।
किसी की नशीली आँखें
सुलगते होंठ
खुले-अधखुले , सुसज्जित केश
मुझे भी प्रभावित करते हैं
शायद तुम्हे विश्वास नहीं
क्योंकि मेरी रचनाओं में
तुम्हें इसकी परछाई तक
दिखाई नहीं पड़ती।
यह भी मेरे
प्रेम , अनुराग
प्यार , मुहब्बत का
प्रमाण है
जो मुझे है
प्रकृति से ,
धरती से ,
विधाता की हर रचना से।
मैं नफरत करता हूँ
शोषण से ,
अत्याचार से ,
दिखावे से,
झूट को सच
और सच को
झूट कहने से ।
यही कारण है
मेरी रचनाएं
इनके विरोध में खड़ी हैं ।
जब कभी
इस अघोषित युद्ध में
जीत ,
मेरी कविताओं की
मेरे विचारों की होगी
और हार जायेंगे
शोषण , अत्याचार , कदाचार
एवं
धरती पर नफरत उगाने वाले
और उनके सहायक तत्व
तब इस धरती पर
सिर्फ़ प्रेम होगा
कोई बच्चा ,
नहीं शिकार होगा
कुपोषण और
बालश्रम के
दानव का ।
कोई महिला
देह्शोषित
नहीं होगी ।
कोई पुरूष
अपने ही
परिजनों की नजरों में
शर्मिन्दा नहीं होगा
तब
मेरी रचनाएं
फ़िर
समय का दर्पण बनेंगी
और एक
नया फलक बनाएंगी ,
इस धरती के लिए ।
मुझे विश्वास है
तब मैं अकेला नहीं रहूँगा
अजूबा नहीं रहूँगा
और ऐसा नहीं रहूँगा ।
परन्तु क्या
मेरे जीते जी
ऐसा होगा ? <poem/>