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<poem>
वो जिनका था इन्तिज़ार, आए

मगर हवा पर सवार आए


जब आइनों से न पार पाया

सब अपने चेहरे उतर आए


हम एक नारे पे जी रहे हैं

बहार आए, सुधार आए


मिटा न पाया कोई अँधेरा

बडे बडे होशियार आए


घुटन से बचना भी है मुसीबत

हवा चले तो बुखार आए


अब अपनी आंखों को बंद कर लो

दिमाग को कुछ करार आए<poem/>