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दुख फ़साना नहीं के तुझ से कहें / फ़राज़
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16:46, 23 सितम्बर 2010
एक तू हर्फ़ आशना था मगर
अब ज़माना नहीं के तुझसे कहें
क़ासिद ! हम फ़क़ीर लोगों का
एक ठिकाना नहीं के तुझसे कहें
ऐ ख़ुदा दर्द-ए-दिल है बख़्शिश-ए-दोस्त
Bohra.sankalp
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