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Kavita Kosh से
<Poem>
अजनबी ख़ौफ़ फ़िज़ाओं में बसा हो जैसे,
शहर का शहर ही आसेबज़दा आसेबज़दा हो जैसे,
रात के पिछले पहर आती हैं आवाज़ें-सी,