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|रचनाकार=रमानाथ अवस्थी
}}
{{KKCatGeet}}<poem>न जाने क्या लाचारी है<br>आज मन भारी-भारी है<br><br>
::हृदय से कहता हूँ कुछ गा<br>::प्राण की पीड़ित बीन बजा<br>::प्यास की बात न मुँह पर ला<br><br>
यहाँ तो सागर खारी है<br>न जाने क्या लाचारी है<br>आज मन भारी-भारी है<br><br>
::सुरभि के स्वामी फूलों पर<br>::चढ़ये चढ़ाए मैंने जब कुछ स्वर<br>::लगे वे कहने मुरझाकर<br><br>
ज़िन्दगी एक खुमारी है<br>न जाने क्या लाचारी है<br>आज मन भारी-भारी है<br><br>
::नहीं है सुधि मुझको तन की<br>::व्यर्थ है मुझको चुम्बन भी<br>::अजब हालत है जीवन की<br><br>
मुझे बेहोशी प्यारी है<br>न जाने क्या लाचारी है<br>
आज मन भारी-भारी है
</poem>