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[[Category: दोहा]]
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सूंई धारां ओसरयो दूधां-वरण अकास ।
रात-दिवस लागै झड़ी सुरंगै सावण मास ।।71।।
बालकों की टोलियाँ मौहल्ले में खड़ी नाच रही हैं । बादली उनको झुक-झुक कर देख रही है और आनंदातिरेक में छलक पड़ती है ।
 
 
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