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Kavita Kosh से
वो खेत आज तो बंजर दिखाई देता है।
जो मुक्षको मुझको कहता था अक्सर कि आइना हो जा,
उसी के हाथ में पत्थर दिखाई देता है।
हमें यह डर है किनारें किनारे भी बह न जायें कहीं,
अजब जुनूँ में समन्दर दिखाई देता है।
वो जर्द चेहरों पे जो चाँदनी सजाता है,
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