वो शख़्स / आशा कुमार रस्तोगी
पल मेँ सदियों का, कोई यूँ हिसाब कर देगा,
मुझको बेताब, रुख़े-माहताब कर देगा।
ज़हन में अब भी हैं, ताज़ा, शरारतें उसकी,
अपनी हरकत से, मुझे दिल-ए-शाद कर देगा।
भूल बैठा हूँ, कई ग़लतियों को मैँ अपनी,
कुछ पशेमाँ हूँ, मुझे आबो-आब कर देगा।
नज़रे-दहराँ मेँ भले, वह है गुनहगार मगर,
दिखा के आइना, वह शर्मसार कर देगा।
अभी ताज़ा है ज़हन मेरे, तबस्सुम उसका,
सुना के दास्ताँ, वह दीदे-आब कर देगा।
राब्ते कितने सँजोये हैं, दौर-ए-फ़ुरक़त,
कितने रिश्तों को, पल में तार-तार कर देगा।
याद है अब भी मुझे, हुनरे-गुफ़्तगू उसका,
आँखों-आँखों मेँ ही, वो दिल की बात कह देगा।
भले है इन्तज़ार, सहरो-शब, मुझे उसका,
आके यकबारगी, वह बेज़ुबान कर देगा।
अश्क़े-सैलाबे-रवाँ-तूल-ए-हिजराँ "आशा" ,
मिल के इक शख़्स, मुझे लाजवाब कर देगा...!