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शब्द संधान / भास्करानन्द झा भास्कर
Kavita Kosh से
मुस्कान की महक
हो जाती जब
बहुत दूर,
तब चेहरों पर,
दुश्चिन्ताओं,
तनावों की रेखाएं
खींच जाती हैं
आड़ी, तिरछी…
मनोबल,
आत्म-विश्वास
की मजबूत कवच
जब टूटती है
बहुत चुभते हैं तब
अपनों,
परायों के
शब्द संधान
मर्मभेदी व्यंग्यवाण…