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शहर वीराँ उदास हैं गलियाँ / हबीब जालिब
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शहर वीराँ उदास हैं गलियाँ
रहगुज़ारों से उठ रहा है धुआँ
आतिश-ए-ग़म में जल रहे हैं दयार
गर्द-आलूद है रुख़-ए-दौराँ
बस्तियों पर ग़मों की यूरिश है
क़र्या-क़र्या है वक़्फ़-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ
सुब्ह बे-नूर शाम बे-माया
लुट गई दौलत-ए-निगाह कहाँ
फिर रहे हैं तुयूर आवारा
बर्क़ हर शाख़ पर है शो'ला-फ़िशाँ
मेरी तन्हाइयों पे सूरत-ए-शम्अ'
रो रहा है अलम-नसीब समाँ
मेरे शानों से तेरी ज़ुल्फ़ों तक
फ़ासला उम्र का है मेरी जाँ