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शाम-2 / केशव शरण
Kavita Kosh से
इसे एक मित्र ख़ुशगवार बना सकता है
इसे एक स्त्री यादगार बना सकती है
नहीं तो यह
कल की तरह ही
आज भी
ढल जायेगी