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शाम अगस्त की / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
Kavita Kosh से
चारों तरफ़ सिर्फ़ हरापन है
और भीगी पृथ्वी
सूरज लंबे अवकाश पर जा चुका
हर बूंद एक मनमौजी बीज
पीले खजूर के गुच्छे
पंख-पसारा खोल नाचते हैं
एक जवान होते तालाब के
सीने पर
तमगे की तरह चमकता है चाँद