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श्वेत दीवार पर / वाज़दा ख़ान

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समय के ताक पर रखा स्मृतियों का ढेर
न जाने क्यों तबदील हो रहा है
रक्तवर्ण में

ताक़ से सटी उस श्वेत दीवार
पर, जहाँ पहले से ही स्मृतियों के तमाम
अवशेष-चिह्न अंकित हैं प्रागैतिहासिक
चित्रों से, जो आज भी उतने ही
समकालीन हैं

अब स्मृतियों का दूसरा स्तर भी अंकित हो
जाएगा उन शैलचित्रो-सा जिनमें
प्रथम स्तर के चित्रों पर इच्छाओं के
रंग चढ़ाकर पुनः दूसरे स्तर पर
चित्रों को अंकित किया गया

नगर प्रथम स्तर के चित्रों का धुँधलापन
आज भी शेष है ।