हम वहाँ तो नहीं पहुँच गये हैं
कि समय के चेहरे पर झुरियाँ पड़ गयी हैं
रात हमारे मन में एक दुःस्वप्न की तरह भरी हुई
और हमें इन्तजार कि
कौन सबसे पहले अलविदा कहता है
हम ऐसे तो नहीं हो गए हैं
कि हमारे हृदय की कोख में
संवेदना का एक भी बीज शेष नहीं रह गया
यह सच नहीं है
सच तो यह है और यह सच भी हमारे साथ है
कि मरे से मरे समय में भी कुछ घट सकने की सम्भावना
हमारी साँसों के साथ ऊपर-नीचे होती रहती है
और हल्की-पीली सी उम्मीद की रोशनी के साथ
किसी भी क्षण परिवर्तन के तर्कों को
अपनी घबराई मुट्ठी में हम भर सकते हैं
और किसी पवित्रा मन्त्रा की तरह करोड़ों
लोगों के कानों में पूंफक सकते हैं
कोई भी समय इतना गर्म नहीं होता
कि करोड़ों मुट्ठियों को एक साथ पिघला सके
न कोई अकेली भयावह आँध्ी, जिसमें बह जाएँ सभी
और न सही कोई
एक मुट्ठी तो बच ही रहती है
कोई एक तो बच ही रहता है
जमीन पर मजबूती से कदम जमाए
कोई एक बूढ़ा, कोई एक पाषाण...
न सही कोई और,
एक मुट्ठी तो बच ही रहती है....