अदहन जैसे खौलते हुए
जुनून की तपिश लिए
कई बार चाहा
मेरे अधरो से तेरा नाम नहीं निकले
हर बार दिल
ओस की फुहारें खोज लाता है
और दिमाग
पत्थर पर दूब जमा बैठता है
यही से फिर शुरु होती है
उफनते सपनों की अंगड़ाई
और तब मैं हार जाता हूँ ।
अदहन जैसे खौलते हुए
जुनून की तपिश लिए
कई बार चाहा
मेरे अधरो से तेरा नाम नहीं निकले
हर बार दिल
ओस की फुहारें खोज लाता है
और दिमाग
पत्थर पर दूब जमा बैठता है
यही से फिर शुरु होती है
उफनते सपनों की अंगड़ाई
और तब मैं हार जाता हूँ ।