भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सबकुछ अपने आप संभाला जाएगा / पंकज कर्ण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबकुछ अपने आप संभाला जाएगा
अर्थप्रबंधन कब तक टाला जाएगा

पहले हर भूखे को उनके हक़ की दें
मेरे अंदर तब ही निवाला जाएगा

पहले उनको अपना तो होने दें फिर
आस्तीन में सांप भी पाला जाएगा

"सबको न्याय सभी को उनका हक़ देंगे"
वोट है, जुमला फिर से उछाला जाएगा

रूप बदल 'पंकज' बहेलिया आया है
जाल बिछेगा, दाना डाला जाएगा