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समय की पुकार / प्रेमलता त्रिपाठी

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महकती दिशाएं बिहँसती बयार ।
खिली है अरुणिमा नयन पट उघार ।

उषा ने छुआ रवि किरण बन कपोल,
नगर ग्राम्य में छा गया तब निखार ।

मिटा दो कलुष को हृदय कर विशाल,
करें कर्म अपना समय की पुकार ।

जगेगी मनुजता बनेगा महान,
विकट जो हृदय की भरेगी दरार ।

बहे प्रीति पावन गरल का निदान,
क्षमादान होंगे कुटिलता बिसार ।

करें मान जीवन, भरें हम हुलास,
हठी बन रहें क्यों लगे सब कतार ।

मधुर रागिनी चाँदनी सा सुहास,
खुशी का यही पल न मिलता उधार ।