सहज खोले अतीन्द्रिय सुगंध के केश
टिमकते प्रकाश का पाल ताने प्रकृति
चलती चली जा रही है विस्मरण में
बही हो जैसे किसी की कोई नाव ।
सहज खोले अतीन्द्रिय सुगंध के केश
टिमकते प्रकाश का पाल ताने प्रकृति
चलती चली जा रही है विस्मरण में
बही हो जैसे किसी की कोई नाव ।