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साँपिन डगर / श्याम सुन्दर घोष
Kavita Kosh से
तरबन्ना सें होय केॅ आबै छै साँपिन डगर,
की कभी ओकरा पर तोहरोॅ ठहरलोॅ छौं नजर ?
ऊ साकार कविता छेकै अद्भुत छै ओकरोॅ छन्द,
एक-एक मोड़ छेकै एकरोॅ स्टेंजा आकि अलग-अलग बंद।
एक-एक झाड़-विरिछ कोमा-सेमिकाॅलन छेकै,
कहीं-कहीं पर छै टौप या सीधा फुलस्टाप।
कंकड़ छै, बालू छै, छै कमसिन धूल,
अगल-बगल फूल-पात कहीं-कहीं फूल।