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साक्ष्य सभी खोकर भी बोले / रोशन लाल 'रौशन'
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साक्ष्य सभी खोकर भी बोले
सच तो चुप होकर भी बोले
गिरने वाला अंधा है क्या ?
रस्ते की ठोकर भी बोले
कान धरे अधिकार न किंचित
मज़बूरी रोकर भी बोले
श्रम को सुनना करना पड़ता
पूँजी जो सोकर भी बोले
मेरी चाहे बात न माने
अपना मन टोकर भी बोले
क़ातिल का खंजर छुप जाए
हाथ जहू धोकर भी बोले