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सियासी उल्लास का आडंबर / गुलज़ार हुसैन
Kavita Kosh से
किसानों की आत्महत्या से
कांपते खेतों का विलाप
पूंजीपतियों के लिए बनाई गई
बड़ी-बड़ी योजनाओं के शोर से दब जाता है
सफाईकर्मियों की मौत से थरथराते
फुटपाथों की सिसकियाँ
चमकती सड़कों पर फिसलते नेताओं के झाड़ू
की सरसराहट में गुम हो जाती है
कोकराझार के आतंकी हमले में
मारे गए मासूमों की चीख
किसी नेता के लिए बड़े पुरस्कार की घोषणा
के उल्लास में दफ़न हो जाती है
क्या हर त्रासदी को छुपाने के लिए ही
रचा जाता है 'सियासी उल्लास' का आडंबर