भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुकीया-तेरह विधि / रस प्रबोध / रसलीन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुकीया-तेरह विधि: भरत के मत से

सात बरस लौं जानिये देवी सुद्ध प्रमान।
बहुरि देवि गंधर्व ह्वै चौदह लौ यह जान॥॥495॥
तेहि पीछे इक्कीस लौ सुच्छ गंध्रवी होइ।
पुनि गंध्रवी मिलि मानुषी अष्ठाइस लौं जोइ॥496॥
सुच्च मानुषी को बरनि पैंतिस लौं उरधारि।
सात बरस प्रति लहतिहै पांच नाम ये नारि॥497॥
पुनि इन पाँचो भेद मैं तीनि भेद यौं जानि।
साढ़े दस लौं रहति है गौरी बैस प्रमानि॥498॥
पुनि पौने दस लौं रहे ओही गौरी लेस।
सवा बारही बरस लौं पुनि लच्छिमी सुदेस॥499॥
साढ़े चौबीस लौं रहे बैस लच्छिमी आनि।
तेहि ऊपर पैंतीस लौं बैस सरस्वति जानि॥500॥
पैंतिस ऊपर नारि के और बैस को लाइ।
नहिं बरनत रस अंथ में यह कवि कहत बनाइ॥501॥
गौरी पूजन जोग है लक्ष्मी योग समर्थ।
बहुरि सरस्वति जानिय मतो पूछिए अर्थ॥502॥
ताहि लच्छिमी बैस मैं सुकिया तेरह जानि।
तामें मुग्धा पाँच... विधि... भरत मते पहिचानि॥503॥
पुनि मध्या है चारि बिधि प्रौढ़ा हूँ है चारि।
सो इनि तेरह भेद मैं मुगध ये उर धारि॥504॥
प्रथम अंकुरित यौबना तीन मास लौं होइ।
नवल बधू षटमास लौं यह निश्चै जिय जोइ॥505॥
बहुरि चौदहें बरस पुनि नव यौवना निवास।
नवलअनंगा पंद्रहें बरस करत परकास॥506॥
होय सोरहे बरस मैं पुनि सलज्ज रत नारि।
अब मध्या को बरन पुनि प्रौढ़ा कहौं विचारि॥507॥
मध्या नूढ़ा जोबना बरस सत्रहे माह।
प्रकटै मदन अठारहें बरस कहे कवि नाह॥508॥
होत बरस उनईस में प्रगलभ बचना आनि।
बहुरि बीसयें बरस मैं सुरति विचित्रा मानि॥509॥
प्रौढ़ा लुब्धा इति बहुरि इकईसे में होति।
बाइसवें रति कोविदा जानत है सब गोति॥510॥
तेइस में बसि बल्लभा नाम धरत बुधिवंत।
साढ़े चौबीस लौं बहुरि रहै सुभ रमा अंत॥511॥

द्वितीय भेद: वय के क्रम से कथन

सात बरस लौं जानिये कन्या को परमान।
तेरह लौं गौरी बहुरि बाला बैस निदान॥512॥
तरुनि कहैं तेईस लौं प्रौढ़ा पुनि चालीस।
यहि बिधि तिय बय कोक मन बरनि गये कवि ईस॥513॥