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स्मृति-तीन / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
अहाँक कायाक गढ़नि
सिद्ध शिल्पकारक शिल्प जकाँ कयलनि अछि
प्रकृति।
प्रेमी सभक मोनक
बेर-बेर
लोभबइए
बहकाबइए
प्रेमक आगिकें
पजारइए
अहाँक काया।
हमहूँ जनैत छी
अहँू जनैत छी
सभ दिन नहि रहतैक
काया
मुदा,
सभ दिन रहतैक
प्रेम
आ प्रेमक स्मृति।