हजरत अली की वंदना / रसलीन
1.
बिधि मना कियो खानों आदम कों सोई दानों,
हैदर न मुख आनों सब लोक गायो है।
मूसा कों न राख्यो छिन जान के अजान जिन
सोई खिज्र आप तिन हैदर सिखायो है।
ईसा जनमायो निज भौन तें निकार कर
तिन प्रभु हैदर आप घर लै जनायो है।
ऐसो साह आलीजाह बाहुबली दीपनाह
सेर अलह अली नाँह फातिमा ने पायो है॥5॥
2.
भूप आस बाहक हौ जग के निबाहक हो,
जाचक के थाहक हौ जस के निधान जू।
भव सिंधु थाहक हौ पापिन के दाहक हौ,
बिघन बगाहक हौ साहब सुजान जू।
दीनन के गाहक हौ, सेवक के चाहक हौ।
दया के बलाहक हो बरसिए दान जू।
धर्म अवगाहक हौ नबी के सलाहक हौ,
फातिमा के ब्याहक हौ साह मरदान जू॥6॥
3.
प्रभु आस के बँधैया औ सनाह के सजैया,
दुलदुल के चढ़ैया $ रूप दरसाइए।
दल के घसैया जुर जंग के लरैया,
पर पीर के हरैया तुम्हैं बिनती सुनाइए।
भेद के बतैया, दीन पंथ के दिखैया,
ओ मुहम्मद के भैया दास रावरे कहाइए।
जग के मथैया भवसिंधु के खिवैया,
सबलोक के तरैया मेरी नैया पार लाइए॥7॥
4.
प्रभु कों जपौं न आन मन मेरे एक छन,
बेद औ पुरान को किए न चित चाव रे।
तजि द्वार ईस को नवायो सीस मानुस को,
पेट ही के काज सब लाज खोई बावरे।
ऐसो है नदान जाहि आज लौं न आयो ग्यान,
कबौं ना तजै अजान आपनो सुभाव रे।
भरो अपराध तऊ डरत न तिल आध,
साह मरदान जू भरोसे एक रावरे॥8॥