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हम कितना रोये होंगे / धीरज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
तुम क्या जानो तुम्हे सोचकर
हम कितना रोये होंगे !
आओ बैठो पास हमारे
तनिक पूछ लो हम कैसे हैं ?
चलते रहे सफर में मीलों
दिशाहीन बादल जैसे हैं !
नयनों में भर-भरकर पानी
कैसे हम ढोये होंगे !
तुम क्या जानों तुम्हें सोचकर
हम कितना रोये होंगे !
ढाल वेदना को गीतों में
भटक भटक बस दिल गाता था !
कितनी बार नियंत्रण अपना
साँसो तक से उठ जाता था !
अक्षर - अक्षर को आँसू से
कैसे हम धोये होंगे !
तुम क्या जानो तुम्हे सोचकर
हम कितना रोये होंगे !
जीवन पथ का पुष्प सुवासित
इन हाथों से तोड़ा हमने !
और नेह की जड़ में प्रतिदिन
केवल रक्त निचोड़ा हमने !
इन पलकों में तुम्हें सहेजे
कैसे हम सोये होंगे !
तुम क्या जानों तुम्हें सोचकर
हम कितना रोये होंगे !