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हम गप्पी कहलाते! / योगेन्द्र दत्त शर्मा
Kavita Kosh से
करते हम दिन-रात
हवा से बात
नहीं धरती पर आते;
हम बातों के शेर
न करते देर
दूर की कौड़ी लाते!
हमने सूरज-चाँद
सभी को फाँद
सितारों को चूमा है;
नभ में चारों ओर
मचाता शोर
हमारा मन घूमा है
ऊँचे, बड़े पहाड़
और ये ताड़
हमारे आगे झुकते;
हम धरती के लाल
बजाते गाल
नहीं तिल भर भी रुकते!
हम यारों के यार
लुटाते प्यार
सभी का मन बहलाते;
पर किस्मत का फेर
बड़ा अँधेर
कि हम गप्पी कहलाते!