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हम भी आदी हैं आजमाने के / अश्वनी शर्मा

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हम भी आदी हैं आजमाने के
लोग मिलते नहीं ठिकाने के।

बाज़ है, फाख़्ता, कबूतर भी
अजब से शौक हैं जमाने के।

बात बाजीगरी लगे चाहे
फकत ये तौर है कमाने के।

किस्सागोई शगल रहे उनका
सब है माहिर मगर निशाने के।

रस्म तो पीढ़ियों ही चलती है
लोग शौकीन है निभाने के।

इक नदी ने पलट के देखा तो
गांव सब बह गये मुहाने के।

बर्फ पिघले तो इक हंसी काफी
यत्न है फालतू गलाने के।