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हर क्षण हेने ही लागै छै / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
हर क्षण हेने ही लागै छै,
जोत तोरोॅ मन में जागै छै।
एक लहर जों सुख के आवै
मन केॅ दूर भँसैलेॅ जाबै,
कोॅन जनम के विसरी गेलोॅ
गीत-साथ में गेलेॅ जावै;
कभियो गोतै छै यादोॅ में
फेनू तुरत उठैलेॅ जावै,
कोय लहर जों पकड़ै छी तेॅ
दूर-दूर तांय ऊ भागै छै।
की सुख हमरोॅ यही लहर रं
अमृत-जल में धुलै जहर रं,
की हमरा लेॅ प्रेम-प्रीत सब
जेठोॅ के दिन, बीच पहर रं;
ई तपलोॅ धरती पर ऐथैं
सूखी जाय छै नदी-नहर रं,
ओकरै आय धरै लेॅ चाहौं
जे सुख सुख केॅ ही त्यागै छै।