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हवाएँ गीत फिर गाने लगीं / कुमार रवींद्र

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अरे देखो तो
हवाएँ गीत फिर गाने लगीं

अक्स सोनल परी के
आकाश में फिर दिख रहे
अनगिनत हैं इंद्रधनुआ
उधर सागर में बहे

धूप की पगडंडियाँ
फिर साँस महकाने लगीं

पर्व होना यह सुबह का
हमें है दुलरा रहा
कहीं भीतर गूँजता है
ऋतुपति का कहकहा

हँसो खुलकर -
धूप-परियाँ हमें समझाने लगीं

घास पर जो छंद बिखरे
उन्हें आओ, हम चुनें
झुर्रियों में बसी छुवनों से
नया सूरज बुनें

मत कहो
उँगलियाँ अपनी, सखी, पथराने लगीं