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हुआ फागुनी चित्त हमारा / कुमार रवींद्र

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तुम क्या आईं
सब कुछ बदला
हुआ फागुनी चित्त हमारा
 
इन्द्रधनुष उग आये
क्षितिज पर साँसों के
दिन सारे हो गये
अलौकिक रासों के
 
भीतर छवियाँ
बसीं तुम्हारी
उमग रहा है गीत कुँवारा
 
आँगन की तुलसी पर
सहसा दीप जला
छुआ धूप ने
बगिया का हर बिरछ फला
 
पीतबरन
हो गईं हवाएँ
पियराया है घर भी सारा
 
हम बैठे हैं
आँखों में आकाश लिये
बसे उन्हीं में
तुमने जो मधुमास जिये
 
धार हुईं तुम
ऋतु-गंगा की
हमने शिव बन तुमको धारा