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हुई शाम उनका ख़याल आ गया / मजरूह सुल्तानपुरी
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हुई शाम उन का ख़याल आ गया
वही ज़िंदगी का सवाल आ गया
अभी तक तो होंठों पे था तबस्सुम का एक सिलसिला
बहुत शादमां थे हम उनको भुलाकर
अचानक ये क्या हो गया
कि चेहरे पे रंग\-ए\-मलाल आ गया ...
हमें तो यही था गुरूर गम\-ए\-यार है हम से दूर
वही ग़म जिसे हमने किस\-किस जतन से
निकाला था इस दिल से दूर
वो चलकर क़यामात की चाल आ गया ...