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हैं पवन मन्द चलने लगे / रंजना वर्मा

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हैं पवन मंद चलने लगे।
सारे उपवन महकने लगे॥

कोयलें कूकने फिर लगीं
आम पर बौर लगने लगे॥

हमने जब पीर अपनी कही
लोग सुन उसको हँसने लगे॥

बांट लेते खुशी हैं सभी
दर्द मन में सिसकने लगे॥

जब भी आँसू गिरे आँख से
हर किसी को खटकने लगे॥

स्वार्थ ही मात्र आदर्श है
आचरण भी हैं दिखने लगे॥

भूल बैठे हैं ईमान सब
हैं टके सेर बिकने लगे॥