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है ये ऐलां जरूरी सुनो साहिबो / अश्वनी शर्मा

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है ये ऐलां जरूरी सुनो साहिबो
वो जो दीवार पर है पढ़ो साहिबो।

ये जो फाइल है, कागज़ का टुकड़ा नहीं
आदमी की है किस्मत, गढ़ो साहिबो।

हक मिले आपको ये गिला तो नहीं
फर्ज़ को भी अदा तो करो साहिबो।

जानवर भी भरे पेट खाता नहीं
अब सलीके से तुम भी चरो साहिबो।

फोड़ दे आंख तिनका भी गर जा गिरे
इन हवाओं के रूख से डरो साहिबो।

हुक्म आका का तो तुम बजाते ही हो
एक दिन अपने दिल की सुना साहिबो।

वो जो परचम बना आखिरी आदमी
आदमी ही रहे, दम भरो साहिबो।

ये सुनहरी कलम मार दे, छोड़ दे
साथ किसके हो अब तो चुनो साहिबो।

वक्त की ये नदी अब न यूं ही बहे
दस्तख़त इस पे कोई जड़ो साहिबो।