भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

166 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नी मैं घोल घती एहदे मुखड़े तों पाओ दुध चूरी एहदा कूत है नी
इललिल दीयां जलियां पौंदा ए जिकर हयू ते लायभूत<ref>अमर</ref> है नी
नहीं भाबियां ते करतूत काई सभे लड़न नूं होई मजबूत है नी
जदों तुसां ते सी गाली देंदियां साओ एहतां ऊतनी<ref>बिगड़ा हुआ</ref> दा कोई ऊत है नी
भारया तुसां दे मेहनयां गालियां दा एह तां सुक के होया तबूत<ref>पिंजर</ref> है नी
सौंप पीरां नूं झल विच छेड़ महीयां एहदी मदद ते खिजर ते लूत<ref>बदनामी</ref> है नी
वारस शाह फिरां ओहदे मगर लगा अज तीक ओ रिहा अछूत है नी

शब्दार्थ
<references/>