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आज दशहरा है / प्रकाश मनु

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चलो चलो जी, मेला देखें,
आज दशहरा है।

खिला-खिला सा शहर आज है
झिलमिल-झिलमिल सपने,
लेंगे तीर-कमान, बाँसुरी
ये होंगे अब अपने।

उड़ते गुब्बारों जैसा ही
गप्पू का चेहरा है।

रानी को रसगुल्ले भाते
ढब्बू खाता चमचम,
रंग-बिरंगी चरखी-झालर
लेकर झूलो पम-पम।

जरा जलेबी हमको भी दो
बोल रही सहरा है!

पर थोड़ी मुश्किल है भाई
खत्म न हुई लड़ाई,
रावण का अभिमान अभी है
पग-पग पर है खाई।

सच्चाई पर स्याह झूठ का
अब भी पहरा है!