भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऊधौ जम-जातना की बात न चलाबौ नैकु / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:51, 11 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' |संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऊधौ जम-जातना की बात न चलाबौ नैकु,
अब दुख -सुख कौ बिबेक करिबौ कहा ।
प्रेम-रतनाकर-गम्भीर परे मीननि कौं,
इहिं बह्व-गोपद की भीति भरिबौ कहा ॥
एकै बार लैहैं मरि मीच की कृपा सौं हम,
रोकि-रोकि सांस बिनु मीच मरिबौ कहा ॥
छिन जिन झेली कान्ह-बिरह-बलाय तिन्हैं,
नरक-निकाय की धरक धरिबौं कहा ॥53॥