भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नींद की मछलियां खेलतीं धार पर / केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:34, 12 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ मिश्र 'प्रभात' |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्वप्न-शैवाल से कुछ निकलतीं उधर
कुछ मचलतीं वहां, कुछ बिछलतीं इधर
कुछ अतल को हिलोरें किरण-पुच्छ से

कुछ दीये-सी जलें शुक्ति-शृंगार पर
कुछ चपल-रश्मियों से उभरती चलें
दूधियां चांदनी में संवरती चलें
सुप्त संज्ञा जहां कौंधती कुछ वहां

कौंधतीं बिजलियां ज्यों हवा-तार पर
कुछ रहीं चुन समय के झड़े पंख जो
कुछ रहीं चुन सितारों-जड़ें पंख जो
बीच जल के गिरे जो अचल लड़खड़ा

कुछ उछालें उन्हें चक्षु-पतवार पर
नींद की मछलियां खेलतीं धार पर